DR. MANDHATA RAI

DR. MANDHATA RAI
DLIT. HINDI

परिचय

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गाजीपुर, उत्तर प्रदेश, India

Saturday, October 31, 2009

(सूरसागर में लोकतत्व )soorsaagar me loktatwa


सूरसागर में लोकतत्व


                     सूरसागर में लोकतत्व पुस्तक डॉ मान्धाता राय के डी. लिट उपाधि हेतु स्वीकृत शोध प्रबंध का संशोधित रूप है |हिंदी में  'लोकतत्व' के अर्थ में 'लोकवार्ता' का विश्लेषण किया गया है | अंग्रेजी साहित्य में फोकलोर (लोकवार्ता) से अलग फोक डांस , फोक सांग , फोक टेल , आदि का विशलेषण किया गया है | अनुसंधानकरता  ने तथ्यों के आधार पर हिंदी के पूर्व अध्येताओं के कथन से असहमति व्यक्त करते हुए लोकतत्व  के अवयय के रूप में लोकगान, लोककथा , लोकसंस्कृति, लोकनृत्य आदि का विवेचन किया है |

                      तत्कालीन इतिहास ग्रंथो  , वार्ता साहित्य, सूरदास पर हुए पूर्ववर्ती  अधययन तथा सम्बंधित अन्य ग्रंथो के विश्लेषण तथा सूरसागर के पदों से उनकी तुलना करके, यह निष्कर्ष निकला गया है की सूरसागर में प्रयुक्त लोकतत्व तत्कालीन सामाजिक स्थिति और पुष्टिमार्गीय सेवा पद्धति दोनों से लिए गए है | तीसरे अध्याय में सूरसागर के रचनाकाल पर अंतर्साक्ष्य और बाहिर्साक्ष्यो , का विश्लेषण करके निष्कर्ष निकला  गया है की सूरसागर के पदों की रचना सं 1567  में आरम्भ हुई  जो  सं 1587 तक पूर्ण हो गयी| इसको वल्लभाचार्य जी ने सागर की संज्ञा दी | किन्तु उसमे बाद की घटनाओं पर आधारित पद भी समिल्लित किये गए है | सूरदास के गोलोकवास के समय का अंतिम पद भी संकलित है | इस प्रकार पद  रचना का अंतिम काल सं 1620 से 1640 ठहरता है |

                           चौथा अध्याय सूरसागर में उपलब्ध वस्तुगत लोकतत्वो के विश्लेषण  से सम्बंधित है | इसके अन्तरगत प्रकृति ,  पशुपक्षी , लोकोपासना और लोकविश्वास , लोकमान्यता , लोकोत्सव, पर्व-त्यौहार, व्यवसाय और आजीविका, विविध संस्कार, वस्त्राभूषण एवं श्रृंगार , आवास एवं भोजन, मनोरंजन एवं खेल, और अनुशासन  या दंड से सम्बंधित लोकतत्वों को विस्तारपूर्वक उदाहरण सहित 110 पृष्ठों में विश्लेषित किया गया है | पाचवा अध्याय सूरसागर में पाए जाने वाले शिल्प सम्बन्धी लोकतत्वों के विश्लेषण से सम्बंधित है | इस अध्याय में सूरसागर में प्रयुक्त लोकगाथा, लोकगीत, लोककथा , लोकनाट्य, लोकाभिप्राय या कथानक रुढियां , काव्यरूप कथाविन्यास परिवेश चित्रण और लोक कलाओ, से सम्बंधित सूक्ष्म से सूक्ष्म तत्वों का सोदाहरण विश्लेषण 5o पृष्ठों में प्रस्तुत करके अध्ययन को प्रामाणिक और मौलिकता प्रदान की गयी है |

                           पुस्तक के छठें अध्याय में ’सूरसागर की भाषा में प्रयुक्त लोकतत्वों’ का विश्लेषण किया गया है. आचार्य शुक्ल ने सूरसागर को चलती हुई ब्रजभाषा में सबसे पहली रचना और उसकी भाषा को ब्रज भाषा की चलती बोली पर भी साहित्यिक भाषा कहा है | सूरदास ने अपनी भाषा को ब्रजभाषा न कहकर ’भाषा’ कहा है | सूरदास के अन्य अध्येताओं ने भी उनकी भाषा  को साहित्यिक ब्रजभाषा बताया है | डॉ शिवप्रसाद सिंह ने सूर के पूर्व की ब्रजभाषा की परम्परा को मौखिक नहीं लिखित सिद्ध किया है | प्रस्तुत अध्ययन में सूरसागर की भाषा में लोकतत्व के अर्न्तगत प्रभावशाली अभिव्यक्ति ले लिए भावानुकूल शब्दों का प्रयोग प्रसंगानुरूप शब्द योजना, तत्सम एवं अर्ध्तत्सम शब्दों का प्रयोग , तद्भव शब्द,  विदेशी शब्द, समय संबन्धी शब्द , मुद्रातौला व्यापार संबन्धी शब्द, शाशन व्यवस्था संबन्धी शब्द, ग्रामजीवन के शब्द ध्वनयात्मक शब्दों के विस्तृत उदाहरण सहित विशलेषण करने के साथ साथ सूरदास द्वारा प्रयुक्त  शब्द मैत्री अर्थ गौरव संगीतमयता या स्वर झंकार लोकमुहावरे, उक्तिवैचिंत्य लोकोक्तिया, लोक उपमान, लोकविशेषण और लोकप्रतीको का विस्तारपूर्वक उदाहरण सहित विशलेषण किया गया है | इसके अतिरिक्त उनकी भाषा में अनुप्रास तुको के आग्रह, कोमलकांत पदावली, पुनरुक्तिप्रकाश, पर्यायवाची एवं समानार्थी शब्दों, के प्रयोग का सोदाहरण विशलेषण लेखक ने किया है |

                        पूरी पुस्तक में सूरसागर के परंपरागत शास्त्रीय अध्ययन से हटकर लेखक ने सूरदास, लोकपात्रों , और ग्रन्थ की आत्मा के अनुरूप इसके लोकपक्ष का पहली बार विस्तृत और प्रामाणिक अध्ययन किया है | सूरसागर में उपलब्ध वस्तुगत शिल्पगत और भाषा संबन्धी लोकतत्वों का मूल उत्स ब्रज के आभीर समाज के रीति रिवाज़, विश्वास, रहन- सहन, प्रथा, नृत्यगीत लोकोक्ति, मुहावरों आदि में है | इसमे तत्कालीन सामंती एवं पृष्टि के प्रभाव से वस्त्राभूषण खानपान,. संगीत योजना जैसे तत्वों का समावेश, पुष्टिमार्गीय सेवापद्धाती के माध्यम से हुआ है | किन्तु यह प्रभाव लोकजीवन, के अनाभिजात साहित्य तत्वों के अनुरूप ढलकर समन्वय की भूमिका प्रस्तुत करता है | सूरदास ने कविता के शास्त्रीय सामंती मूल्यों से हटकर अनाभिजात साहित्य तत्वों (आम आदमी) का प्रयोग करके अपने गुरु वल्लभाचार्यजी के द्वारा प्रचलित वेद मर्यादा विरुद्ध पुष्टि मार्ग के सिद्धांतो को व्यावहारिक धरातल पर प्रस्तुत किया है | इस अध्ययन में इन्ही तत्वों का विश्लेषण हिंदी में पहली बार कलिया गया है |


प्रकाशक - विजय्प्रकाशन मंदिर सदिया वाराणसी
आकर डिमाई, मूल्य साजिल्ड २५०/पृष्ठ सं 270

8 comments:

  1. साहित्यिक जन ब्लॉगिंग के संसार में आएँ तो संस्कार और विचार में समृद्धि आएगी। शुभकामनाएँ।
    सूर कालजयी हैं। अभी भी घोंट कर बहुत कुछ नया निकाला जा सकता है।

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  2. चिटठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लेखन के द्वारा बहुत कुछ सार्थक करें, मेरी शुभकामनाएं.
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    महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!

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  3. स्वागत है । लिखते रहिए ।

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. हिंदी ब्लॉग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें तथा अपने सुन्दर
    विचारों से उत्साहवर्धन करें

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  6. Mandhata Rai ji you are output of holy Ganga water .you are Pride and Proud of Bharatvarsa.pls continue

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